5/20/2005

पाती बनाम खत बनाम चिट्ठा ...या जो भी कह दें इसे

आपने फरमान जारी किया..लिखो !
हम जुट गये अमल करने में......दिमागी घोडे दौडाये पर चाबुक थी नौसिखिये हाथों में.......घोडा बेकाबू सरपट दौड गया .
अब अगर कोई बात मुकम्मल सी न लगे तो दोष मेरा नहीं..
तो लीजिये ये पाती है उन बंधुओं के नाम जो विचरण कर रहे हैं साईबर के शून्य में………..सब दिग्गज महारथी अपने अपने क्षेत्र में
और उससे बढ कर ये लेखन की जो कला है, चुटीली और तेज़ धार,..पढकर चेहरे पर मुस्कुराह्ट कौंध जाये, उसमें महिर...

पर मेरे हाथ में ये दोधारी तलवार नहीं..शब्द कँटीले ,चुटीले नहीं.
न मैं किसी वर्जना ,विद्रोह की बात लिख सकती हूँ.......

तो प्यारे बँधुओं..मैं लिखूँ क्या....? 'मैं सकुशल हूँ..आप भी कुशल होंगे " की तर्ज़ पर पर ही कुछ लिख डालूँ...........पर आप ही कहेंगे किस बाबा आदम के जीर्ण शीर्ण पिटारी से निकाला गया जर्जर दस्तावेज़ है........
चलिये ह्टाइये....अभी तो अंतरजाल की गलियों में कोई रिप वैन विंकल की सी जिज्ञासा से टहल रही हूँ.......शब्दों के अर्थ नये सिरे से खोज़ रही हूँ...लिखना फिर से सीख रही हूँ......
इसलिये मित्रवर ये पाती तो बस ऐसे ही फ्लाप शो समझ कर शून्य के गटर में डाल दीजिये..
हम भी धार तेज़ करने की कोशिश में लगे हैं..जब सफल होंगे तब एक खत और ज़रूर लिखेंगे..तब तक बाय बाय, अल्विदा , फिर मिलेंगे........

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